8TH SEMESTER ! भाग- 127( Bloody End of 3rd Semester- 7)
"ये सही जगह है...यहाँ तोड़ा आराम कर लेता हूँ..."अपने सर पर हाथ फिराते हुए मैने खुद से कहा , ब्लीडिंग रुक चुकी थी और मैं अब तक होश मे था...जिससे मुझे राहत मिली ,लेकिन सर अब भी रोड के जोरदार प्रहार से दुख रहा था....मैं इस वक़्त एक छोटे से ग्राउंड मे था,जहाँ कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे.... पर जबसे रुका था,तब से मेरा मन मचल रहा था.. मेरा दिमाग़ हल्का हल्का घूम रहा था.. या फिर ये कहु की यही वजह थी जो मैने यहाँ रुक कर आराम करने का सोचा
"पानी है क्या...पानी"क्रिकेट खेलने वालों के पास पहुच कर मैने उनसे पानी माँगा...
पहले तो वो लड़के मुझे देखकर घबरा गये और एक दूसरे का मुँह ताकने लगे...लेकिन बाद मे उनमे से एक ने थोड़े दूर पर रखा अपना बैग उठाया और पानी का एक बोतल मुझे थमा दिया...
"थैंक्स भाई..."लंबी-लंबी साँसे भरते हुए मैने उसके हाथ से बोतल ले ली और बोतल का ढक्कन खोल कर पानी के कुछ घूट अपने गले से नीचे उतारा और फिर बाद मे बाकी बचे पानी से अपने सिर पर उड़ेलने लगा ....मेरे सर पर कई जगह खून बालो से चिपक गया था और मैने जब अपने सर पर पानी डाला तो मेरा पूरा चेहरा, पूरा कपड़ा, पानी मे भीगता हुआ पूरा शरीर खून के रंग मे रंग गया ...मेरे सिर मे जिस जगह रॉड पड़ी थी वहाँ जब मेरा हाथ गया तो जोरो का दर्द हुआ ,जिसके बाद मैने तुरंत अपना हाथ वहाँ से हटा लिया और खून से सनी शर्ट उतार कर वही ग्राउंड मे फेक दी....
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मैने एक बार फिर क्रिकेट खेल रहे उन लड़को का शुक्रिया अदा किया और वहाँ से दूर जहाँ बैठने का इंतज़ाम था उधर चल पड़ा.... रॉड मुझे लगभग 15-20 मिनिट पहले पड़ा था लेकिन उसका असर अब हो रहा था. मैने मोबाइल निकाल कर अमर सर को कॉल करने का सोचा और जहा बैठने का इंतजाम था,उधर चलने लगा... ग्राउंड पर चलते समय अचानक ही मेरी आँखो के सामने धूंधलापन फिर से छाने लगा और थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद मेरे हाथ-पैर भी जवाब देने लगे. मैं लड़खड़ाने लगा था और लड़खड़ाने के कारण ज़मीन पर भी गिरा... लेकिन फिर उठ खड़ा हुआ और आगे बढ़ा.. लेकिन तुरंत ही फिर से एक बार ज़मीन मे गिर पड़ा... ऐसे ही कई बार लड़खड़ाते हुए,गिरते -पड़ते मैं उस जगह पहुच ही गया जहाँ बैठने का इंतज़ाम किया गया था.....
"हेलो ,अमर भाई ..मैं अरमान...अरमान बोल रहा हूँ,बहुत बड़ा पंगा हो गया है मेरे साथ...गौतम के बाप के आदमियो ने रेलवे स्टेशन जाते वक़्त मुझपर अचानक अटैक किया और मैं बड़ी मुश्किल से उन्हे चकमा देकर इधर एक ग्राउंड पर पहुचा हूँ... जहा लास्ट ईयर आप लोगो ने मेडिकल कॉलेज वालो के साथ क्रिकेट मैच खेला था. आप तुरंत इधर आ जाओ, और हां साथ मे जितने हो सके उतने लड़को को भी ले आना...."स्पीकर ऑन करके मैने कहा
कहते हुए मै बैठने वाली जगह पर लेट गया और मोबाइल मेरे हाथ से छूटकर नीचे गिर गया...
"आज आया है बेटा लाइन पर, अब तो तू गया....मैं अमर नही नौशाद बोल रहा हूँ,वो क्या है ना बेटा कि अमर का मोबाइल इस वक़्त मेरे पास है.... तूने सबसे बड़ी ग़लती की अमर को फोन लगा कर और उससे भी बड़ी ग़लती की मुझे उस जगह का अड्रेस बताकर जहाँ तू अभी गीदड़ की तरह छिपा हुआ है...तू तो गया बेटा काम से, तुझे मुझसे पंगा नही लेना चाहिए था..."
"Sorry for that day, Sir... But i need help. I think i 'm gonna die .."अपनी बची कूची एनर्जी वेस्ट करते हुए मैं बोला...
"भाड़ मे जा साले, हरामी ..."
"हेलो....हेलो...हेल...हेल..हे..हे..ह..."
मेरा मोबाइल मेरे हाथ से छूट कर पहले ही नीचे गिर गया था और अब मेरी ज़ुबान भी लड़खड़ाने लगी थी, हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया था. मैं खुद के पैरो पर खड़ा होना तो दूर अपने शरीर के किसी हिस्से को ठीक से हिला तक नही पा रहा था. जैसे-जैसे सूरज ढल रहा था वैसे-वैसे मै भी ढल रहा था. एक घना अंधेरा मेरी आँखो के सामने फैलता जा रहा था. मैं किसी को आवाज़ देना चाहता था, मैं किसी को मदद के लिए पुकारना चाहता था...लेकिन ना तो वहाँ इस वक़्त कोई था और ना ही मुझमे किसी को आवाज़ देने की ताक़त बची थी. ग्राउंड पर क्रिकेट खेलने वाले लड़के कब के अपने-अपने घर जा चुके थे. साले स्वार्थी लोग , क्यूंकी यदि कभी मेरे सामने ऐसे खून से सना कोई व्यक्ति पड़ा होता तो मैं उसकी मदद ज़रूर करता, इतनी इंसानियत तो अब भी बाकी थी मुझमे की मैं उसे हॉस्पिटल तक पहुचा देता या फिर मोबाइल से 108/100 डायल करके ये खबर तो दे ही देता कि यहाँ एक इंसान मरने की कगार पर है... Myself Arman, Age-19. मैं भले ही किसी के अरमानो की फिक्र नही करता लेकिन किसी के जान की कद्र करना मुझे आता है नही तो अब तक वरुण ,मुझपर एफआइआर करने वाले फर्स्ट ईयर के वो दो लड़के और गौतम ,आज इस दुनिया मे नही होते.........
मुझे उस वक़्त नही पता था कि आज जो मेरी आँखे बंद होंगी तो फिर कब खुलेगी. खुलेंगी भी या नही ,मुझे इसपर भी संदेह था. जैसे-जैसे रात का पहर बढ़ रहा था मुझे ठंड लगनी शुरू हो गयी थी लेकिन ना तो मैं अपनी दोनो हथेलियो को रगड़ कर गर्मी का अहसास कर सकता था और ना ही किसी को मदद के लिए आवाज़ दे सकता था...थक-हार कर जोरदार ठंड से ठिठुरते हुए मैने अपनी आँखे मूंद ली ,तब मुझे मेरे अतीत की किताब के कई पन्ने याद आने लगे...
मुझे अब भी याद है एक बार जब मुझे जोरो का बुखार हुआ था तो कैसे पूरा घर मेरी देख भाल मे भिड़ा हुआ था. तब मुझे जो भी पसंद होता मैं वो माँगता और मेरी फरमाइश पूरी कर दी जाती थी. मैने कई बार ठीक होते हुए भी ऐसा नाटक किया,जैसे मैं अब बस मरने ही वाला हूँ और घरवालो से ये कहता कि मुझे ये चाहिए ... ये वो वाट्सअप था,जब मै छोटा था और घरवालों का लाडला था... बाद मे चीजे बदल गई और सबके मन ने मेरे लिए प्यार कि जगह नफरत भर गई... वो दिखाते नहीं, लेकिन मै बेवकूफ नहीं हू.
मुझे अब भी याद है कि जब मेरी तबीयत खराब थी तो मेरा बड़ा भाई घंटो मेरे सामने बैठकर मुझे लेटेस्ट न्यूज़ सुनाता रहता ,जिसमे मुझे रत्ती भर भी इंटेरेस्ट नही था और जब मैं अपने बड़े भाई की न्यूज़ सुनकर जमहाई मारने लगता तो वो गुदगुदा कर मेरी सारी नींद भगा देता था.....
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"ढुंढ़ो साले को,उसने फोन करके हॉस्टल के एक लड़को को इसी ग्राउंड का अड्रेस दिया था... जरूर इधरहीच कही छिपा होगा... जिन्दा नहीं बचना चाहिए "
इस आवाज़ ने मुझे मेरे अतीत की किताब से वापस लाकर वर्तमान मे ला पटका, जहाँ मै लहू-लुहान होकर पड़ा हुआ था...मैने आवाज़ की तरफ नज़र दौड़ाई तो पाया कि कुछ लोग हाथो मे टार्च लिए ग्राउंड के अंदर दाखिल हुए है...वैसे तो मेरा सर बहुत जोरो से दर्द कर रहा था ,लेकिन मैने इतना अंदाज़ा तो लगा लिया था कि ये लोग वही गुंडे है और ये यहाँ मुझे तालश रहे है....
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"नौशाद ने सच मे इन्हे बता दिया, यदि आज ज़िंदा बच गया तो सबसे पहले नौशाद को रगडूंगा बाद मे उस R. दीपिका को...."उन्हे अपनी तरफ आता देख मैने सोचा.
जैसे -जैसे वो गुंडे मेरे करीब आ रहे थे मैने खुद मे थोड़ी बहुत ताकत जुटानी शुरू कर दी. मैने अपनी आँखे इधर उधर हिलाई तो मालूम चला कि मुझसे थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ ,जिसके पीछे यदि मैं छिप जाउ तो ज़िंदा बच सकता हूँ.... ज़मीन पर घिसट-घिसट कर जब मैं उस पत्थर की तरफ जा रहा था तो मेरे अंदर सिर्फ़ एक ही ख़याल था कि सबसे पहले मैं नौशाद की खटिया खड़ी करूँगा और फिर दीपिका को कॉलेज से बाहर निकाल फेकुंगा....मुझे इन दोनो पर ही बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था क्यूंकी दीपिका मैम ने मुझे इस लफडे मे फँसाया और जब मैं इससे बच गया तो नौशाद ने आकर मुझे वापस फँसा दिया.....
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आख़िर कर मैं उस बड़े से पत्थर तक पहुच ही गया ,वो गुंडे टॉर्च लेकर उस पत्थर से थोड़ी दूर तक आए और फिर चले गये, उन्हे वहाँ से जाता देख मैने राहत की साँस ली लेकिन मुझे ये नही पता था कि हालत अभी और बदतर होने वाले है....मैने उन गुन्डो को जाता देख सुकून की साँस तो ली लेकिन मैं उन गुन्डो मे शामिल उस एक को नही देख पाया जो अंधेरे मे अपनी टॉर्च बंद किए ठीक उसी पत्थर के उपर खड़ा था ,जिसके ओलट मे मैं लेटा हुआ था....मुझे इसका अहसास तब तक नही हुआ कि एक शख्स ठीक मेरे उपर है, जब तक वो कूदकर मेरे सामने नहीं आ गया ...उसने हाथ मे मुझे मारने के लिए हॉकी स्टिक टाइप का कुछ पकड़ रखा था ,जिसे उसने पहले पहल मेरे गाल मे हल्के से टच किया और फिर मेरे सीधे सर मे दे मारा.....इस बार भी दिमाग़ पूरी तरह झन्ना गया और मेरा सिर पत्थर से जा टकराया और तुरंत ही एक तेज दर्द मेरे सर मे उठा. उसके बाद वो नही रुका और नोन-स्टॉप मेरे हाथ-पैर...सर, पेट ,सीने मे हमला करता रहा....कुछ देर बाद उसके साथी भी वहाँ पहुच गये और वो सब भी मुझ पर एक साथ बरस पड़े....
मुझे बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था, मैं दर्द से चीखना चाहता था... लेकिन आवाज़ थी कि गले से उपर नही आ रही थी... मेरे शरीर के हर एक अंग को बुरी तरह से पीटा जा रहा था बिना इसकी परवाह किए कि मैं मर भी सकता हूँ... वो मुझे तब भी मारते रहे जब मुझे होश था और शायद मुझे उन्होने तब भी बहुत मारा होगा जब मैं बेहोश हो चुका था....
"So, This is the end of The Great Arman"आँख बंद होने से पहले मैने खुद से पूछा
"It is.. I Guess"मेरे दूसरे version ने मुझे जवाब दिया.
"Goodbye... 2.0"
Raghuveer Sharma
14-Jan-2022 02:34 PM
क्या सच मे अंत हो गया ग्रेट अरमान का .....????? बहुत ही दुखद 😔
Reply
Roshan
12-Jan-2022 12:12 PM
Nice
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